शनिवार, 17 दिसंबर 2016

एक सुंदरी का पति

एक सुंदरी का पति
(चित्र आधारित कथा)
रम्या ज्यूँ ज्यूँ बढ़ रही थी उसकी खूबसूरती भी दिन दूनी रात चौगुनी हो बढ़ रही थी. उसकी माँ  उसकी खूबसूरती देख चिंतित हो जाती कि कैसे संभाल पायेगी वह इस रूप-राशि को. १८-१९ का होते होते उसके पिता के पास इतने रिश्ते आने लगे कि उन्हें लगा कि शायद यही सही होगा, शादी हो अपने घर-बार लगे तो चिंता मिटे.
शादी हो रम्या कुछ दिन अपने पति रामेश्वर संग ससुराल में रहने के पश्चात् जब शहर उसकी नौकरी पर जाने लगी तो सासु माँ ने टोक दिया,
“देख रमेसर, बहुरिया को संभाल के रखना ऐसा ना हो कि इसका रूप जंजाल बन जाये”.
रामेश्वर के दोस्त यार सब मिलने आयें, परन्तु उनके विस्मित चकित मुद्रा ने रामेश्वर को माँ की बात पर भरोसा दिला दिया. अगल-बगल की महिलाओं ने उसकी दुल्हन देख ठिठोली करते हुए कहा,
“इस कोठरिया में इतना रूप कैसे समाएगा रामेसर बाबू?”
बहुत ही ज्यादा प्यार करता अपनी बहुरिया को, परन्तु दफ्त्तर जाते वक़्त उसे कमरे में बंद कर जाता. गाँव की अल्हड़ मैना शहर में दिन भर काठ के पिंजरे में बंद रहने लगी. शाम ढले जब रामेश्वर आता तब भी उसे कहाँ आजादी, तब ताला भीतर से बंद होता. पहले रम्या को इन्तेजार रहता शाम का, धीरे धीरे रामेश्वर का प्यार चुभने लगा शूल बन. चूड़ी-बिंदी-काजल-आलता सब छोड़ दिया.  कभी अम्मा को याद कर जोर जोर से रोती तो कभी कोई भूला बिसरा गीत उसी क्रंदन स्वर से सुर मिला लेती........बीती बातें याद आती लगातार याद आती रहती,
" काश ! कि इतना रूप ना मिला होता", रम्या सोचती ....
उस दिन रामेश्वर घर आया तो दरवाजे पर मोहल्ले के शोहदों को देखा जो बारी बारी एक सूराख से झांक रहें थे, उसे देखते सब तितर बितर हो गए. अंदर बेखबर मैना कोई गीत गा रही थी या रों रही थी पर खुद में मशगूल और आत्मलीन थी. चुभ गयी रामेश्वर को उसकी बेरुखी,
“मेरे पीठ पीछे यहाँ किसे गीत सुना रिझाया जा रहा है?”, मृत प्राय रम्या में ये लांछन अंतिम बार जीवन संचार कर गयी.
उस रात काठ का द्वार तो बंद रहा पर एक मैना अपने शरीर को छोड़ आज़ाद हो चुकी थी. रामेश्वर कंचन काया ले हतप्रभ हो अपना सर पटकते रह गया.





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