मंगलवार, 23 अगस्त 2016

रिहाई dainik jagram me 23 october 2017

रिहाई
(चित्र आधारित)
माँ के गुजरने के बाद बेटा अपने बाबूजी को हमेशा के लिए अपने साथ रखने महानगर ले कर आ गया था. कुछ दिनों तक मेट्रो, मॉल, पार्क, वाटर किंगडम, अपार्टमेंट में ऊपर नीचे इत्यादि घूमने के बाद उन्होंने अपने बेटे से कहा,
"बेटा, मुझे यहाँ की रहन-सहन देखने के बाद अपने गावं में आई बाढ़ की एक दृश्य की स्मृति हो आई".
"कौन सा दृश्य भला, ऐसा यहाँ क्या देखा जो आपको बाढ़ के दृश्य याद आ गएँ ?", बेटे ने आश्चर्य से पूछा.
"पिछले वर्ष जब भयंकर बाढ़ आई थी तो गावं के कुछ हिस्से छोटे छोटे टापू में मानों बदल गएँ थें. हमारा घर कुछ उंचाई पर था तो डूबने से भले बच गया पर पानी ने कई दिनों तक चारों ओर से घेर हमें बाकी दुनिया से काट एकाकी कर दिया था. आज भी उस वक़्त को याद करता हूँ तो सिहर जाता हूँ ", बाबूजी ने कहा.
बेटा अभी भी इस अजीबो गरीब मेलापक को विस्मयचकित हो सुन रहा था.
"मैंने यहाँ देखा कि इतने बड़े तथाकथित अपार्ट मेंट में ९०-१०० परिवार रहतें हैं. अपने आप में एक गावं जैसी आबादी. पर आपस में मेल जोल या वास्ता बिलकुल नाम मात्र को है. इस भागती दुनिया में सब अपने आप में मानों गुम हैं अपनी - अपनी टापू जैसी जिंदगियों में कैद ", बाबूजी ने कहा तो बेटा सोचने लगा. 
"बाबूजी, आप सही कह रहें अपनी अपनी जिन्दगी में सब परेशान - हैरान से सिमटे हुएं".
"सही, वहां गावं में तो सब एक दुसरे को जानतें हैं, सब एक दुसरे पर निर्भर भी हैं. मैं यहाँ इस महानगरीय द्वीपीय जीवन में खुद को बेहद एकाकी महसूस करता हूँ. सो बेटा गावं हमारा शहर तुम्हारा. अब सब देख लिया, मेरी टिकट करवा दो जाने की", 
बाबूजी ने ऐसा कहा तो बेटे को उनकी बेचैनी साफ़ महसूस हुई जो जल्द से जल्द नौका या सेतु द्वारा इस महानगरीय द्वीपीय जीवन से रिहाई चाहता था|






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