शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

लघु कथा - (9 ) कुछ देखो तो आवाज उठाओ

कुछ देखो तो आवाज उठाओ -


आज इतने वर्षों के बाद ऊटी में संजना को देख मैं हर्षमिश्रित सुखद आश्चर्य से भर उठी। संजना मेरी पड़ोसन
 और घनिष्ठ मित्र निशा की बहु थी। लाड़-प्यार से मैंने भी निशा के साथ इसका स्वागत किया था। पर जल्द 
ही कलह की आवाजें दीवार भेदने लगीं। दखलंदाज़ी की सीमा का सम्मान करते हुए मैंने कभी नाक नहीं घुसेड़ी पर ढक्कन के अभाव में कान अपना कार्य करते । उस रात पड़ोस में मानों भूचाल आया हुआ था ,संजना की दर्दविदारक चीखें और उठा-पटक की आवाजे बेचैन किये जा रही थी। 

"अपने बाप को बोलो पहले दहेज़ की बाकी रकम पूरी करे " की अस्फुट आवाजें भी आ रहीं थीं।
 अधखुले दरवाजे से मैंने देखा अपनी तथाकथित सहेली का वह पैशाचिक रूप। फिर पुलिस आ गयी अचानक ,जिसने सब कुछ देखा और मामला कोर्ट तक पहुंचा। मेरी सहेली मुझसे बहू के द्वारा पुलिस बुला तंग करने के किस्से सुनाती रही। 

"आंटी ये मेरे पति राहुल हैं ",
मेरी तन्द्रा टूटी। तो संजना ने दूसरी शादी कर ली। 
"थैंक यू आंटी ,मैं जानती हूँ उस रात पुलिस को आपने ही बुलाया था।"चलते हुए धीरे से उसने कहा। 
आज़ाद पंछी की उड़ान को मैं देर तक देखती रही .......




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