शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

लघु कथा - ( 8 ) आंतक

आंतक


बात बहुत पुरानी है तब लोग "आतंकवाद" किस चिड़िया का नाम है नहीं जानते थे। मेरे ससुराल में मेरे ददिया ससुर जी का  राज चलता था। साक्षात दुर्वासा के अवतार थें। पता नहीं क्या सोच थी पर मैंने उन्हें कभी किसी से प्यार या शांती  से बात करते नहीं सुना था। मेरे ससुर जी ,पति ,देवर ,सासु माँ सब थर थर कांपते थें उनके समक्ष। उनकी पसंद-नापसंद बिलकुल अप्रत्याशित होती। छोटी छोटी बात पर उन्हें हंगामा करते देखती। भोजन करने बैठते तो जरा सी भी उन्नीस-बीस बर्दास्त नहीं होती और फिर थाली पटक दी जाती। कारोबार की छोटी सी गलती  पर मेरे श्वसुर और उनके पुत्र घंटों उनकी लानते सुनतें चुप चाप सर झुकाये। एक तरह से उनसे हर कोई त्रस्त था। 


  एक दिन मालिश के दौरान नौकर ने जोर से कोई नस दबा दिया तो उनका पारा  सातवें आसमान पर जा पहुंचा। गालियों के बौछार के साथ उन्होंने जैसे ही चपत लगाने हाथ उठाया पक्षाघात ने अपना काम कर दिया। 
    लकवा ग्रस्त दादा जी मूक हो, जो बिस्तर पर गिरे फिर चार सालों के बाद अर्थी पर ही उठें। देश में आतंकवाद सर उठाने लगा था पर हमारे घर में अमन का साम्राज्य स्थापित हो चुका था।


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