गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

लघु कथा - (3) इज्जत


इज्जत



कई सालो के बाद अपने शहर लौटी थी,सब के जुबान पर एक नयी खबर थी कि निर्मला माँ बनने वाली है। मैंने
 भी दांतों तले ऊँगली दबा लिया। लोगबाग मज़ाक करते बता रहें थे कि शादी योग्य अपने बच्चों की भी इज्जत का उसे ध्यान न रहा । निर्मला के पति का लंदन तबादला दो-तीन वर्ष के लिए हो गया और वो लोग सपरिवार वहीँ शिफ्ट हो गएँ हैं और कोई अता-पता भी नहीं था किसी के पास।अपने जान -पहचान वालों के लिए बड़ी खबर थी शहर में। 
२-३ वर्ष बाद उसका परिवार शहर लौटा गोद में अपने नन्हे बेटे को लिए बड़ी सी पार्टी दिया और बेटी की शादी तय होने की खुशखबरी सुनाई। मैं सिर्फ उसकी सहेली ही नहीं बल्कि उसकी डॉक्टर भी रहीं हूँ ,मौका पाते ही अकेले में मैंने उसका हाथ पकड़ा और पूछा क्या माज़रा है ।
 निर्मला ने धीरे से बेटी की तरफ इशारा करते हुए कहा ,"बिनब्याही,कमउम्र बेटी की गलती को मैंने सिर्फ ढका है। उसकी और मेरे होने वाले दामाद की पढाई और करियर के लिए मेरे पास इससे बेहतर विकल्प नहीं था " ।





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