शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

लघु कथा - (16 ) यात्रा


यात्रा 
हरे पत्ते पीले हो चले ,टहनी से उसका जुड़ाव कमजोर हो चला। खूबसूरत मजबूत   चटकीला पत्ता सूखा कमजोर बदसूरत हो गया। सब छूट गया जवानी,तंदरुस्ती ,पत्नी ,दोस्त परन्तु रामलाल जी ने एक को नहीं छोड़ा था वह थी उनकी कृष्ण -भक्ति। शरीर के हर अंग शिथिल हो चले थे। भौतिक जगत से दूरी बढ़ रही थी पर उन्हें अकेलापन या बेबसी महसूस नहीं होती थी क्यूंकि उनका कान्हा हर वक़्त उनके साथ होता था। उनके कांपते डगमगाते हथेलियों पर किसी का नरम मजबूत दबाव ऊर्जा का संचार कर देता। भक्ति की नैया पर बैठ रामलाल जी बड़ी ही सुगमता से इहलोक से  परलोक की यात्रा कर रहें थें। उन्होंने कृष्ण भक्ति कभी नहीं छोड़ा और कान्हा ने उनका हाथ। 






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